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सीमा शर्मा पाठक सृजिता

Romance

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सीमा शर्मा पाठक सृजिता

Romance

इश्क -ए-सुरूर

इश्क -ए-सुरूर

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स्याह रात के आलम में अरमान जब मचलते हैं 

कैसे बताये हम हरजाई मुश्किल से संभलते हैं 

गहरा सा सन्नाटा मन को खाये जाता है 

चांद भी तन्हा तनहाई में तेरी याद दिलाता है 

तारे गिन गिन रात गुजारी दिल पर जुल्म हमने किया 

मुँडेर पे बैठे अपलक हम करते रहे इंतजार पिया 

बंजारा सा मन हुआ है नैन बडे़ खामोश है

इश्क नशा कुछ यूं चढ़ा होश में भी मदहोश हैं 

आंख फड़कती हर घड़ी दिल कहता तुम आओगे 

आओगे तो पूछेंगे अब कब तक यूं तड़पाओगे 

सो रहा सारा जहां हम जागते बैठे रहे 

ये रात बैरन हुई गुजरने में सदियां लगे 

बिन कहे ही जान लो, पहचान लो इश्क -ए-सुरूर 

थक गये तनहाइयों से आ भी जाओ अब हुजूर




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