इश्क़ (बुढ़ापे का)
इश्क़ (बुढ़ापे का)
चले जा रहे इश्क़ लड़ाने,
बन युवा बुढ़ापे में,
कमर झूल रही कब्र में और,
जान फंसी जनाजे में।
देख दूर से नवयौवन
ये सेंक रहे अपने नयन,
सांसें अटक गई हलक में
सुन दादाजी का संबोधन।
आधे बालों पर अभी भी
छपी सफ़ेद निशानी है,
चेहरे की झुर्रियां
कहे उम्र की कहानी है।