श्रृंगार बाॅक्स
श्रृंगार बाॅक्स
काश! पुरुषों का भी श्रृंगार बाॅक्स होता
काजल लिपिस्टिक उसमें कतई न होता
शायद और संभवतः सच कहूं तो
खैनी बीड़ी सिगरेट के अब्बे डब्बे
छोटे छोटे वाईन का बोतल होता
जर्दा कत्था सौंफ सुपारी
तुलसी रजनीगंधा का पुड़िया होता
लब रहे सुर्ख लाल गुलाब
मगहिया पान का पत्ता होता
काश! पुरुषों का भी श्रृंगार बाॅक्स होता
बाजार कार्यालय या काम पर जाते
श्रृंगार बाॅक्स संग ही ले जाते
देख चौराहे पर चहल पहल
गुमटी के पीछे अक्सर बैठ वो जाते
घंटे मिनटों की फिकर छोड़
जी भर श्रंगार कर वो आते
काश! पुरुषों का भी श्रृंगार बाॅक्स होता
लड़खड़ाते बलखाते जब वो घर को आते
देख प्रियवर की अनुपम श्रृंगार
प्रियतमा भी खुश होती अपरम्पार
मिली होती सामाजिक मान्यता उसे
अग्रज अनुज भी उन्हें कुछ न कहते
हंसी खुशी जिंदगानी कटती
कितना अच्छा होता
पुरुषों का भी एक श्रृंगार बाॅक्स होता।
