STORYMIRROR

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy

4  

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy

तुम्हारी उन आंखों से डर लगता ह

तुम्हारी उन आंखों से डर लगता ह

1 min
373


सुनो प्रिये तुम्हारी उन आंखों से डर लगता है

सुनो प्रिये तुम्हारी उन आंखों से डर लगता है

खामोश जुबां बेजान बांहों से डर लगता है

जब तुम झाड़ू लगाकर पोंछा लगाती हो

पूरे घर में स्वयं अघोषित कर्फ्यू लगाती हो

उस गीले फर्श पर पांव रखने में डर लगता है

सुनो प्रिये तुम्हारी उन आंखों से डर लगता है

जब तुम नहाने के लिए बाथरूम में जाती हो

धोने हेतु हमारे सारे कपड़े साथ ले जाती हो

केवल तौलिये में बाहर आने में डर लगता है

सुनो प्रिये तुम्हारी उन आंखों से डर लगता है

जब तुम किसी पार्टी में मेरे साथ जाती हो

उसी पार्टी में मेरी कोई कुलीग मिल जाती हो

उससे खुलकर कहकहे लगाने में डर लगता है

सुनो प्रिये तुम्हारी उन आंखों से डर लगता है

जब मेरे दोस्त कोई पार्टी का आयोजन करते हैं

दो चार घूंट बीयर मुझे भी जबरन पिला देते हैं

फिर घर की दहलीज पर आने में डर लगता है

सुनो प्रिये तुम्हारी उन आंखों से डर लगता है

जब किसी बात पर हम दोनों तकरार करते हैं

छत्तीस के अंक में सोने का प्रयास करते हैं

तकिये से बनाई दीवार गिराने में डर लगता है

सुनो प्रिये तुम्हारी उन आंखों से डर लगता है।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Comedy