इश्क और लड़की
इश्क और लड़की
मैंने इश्क़ किया उस लड़की से जिसे प्रेम की बिल्कुल तहज़ीब नहीं थी.
रो पड़ती थी बस इतनी बात पर कि
उसके गाँव में मेरे नाम के किसी लड़के की शादी हो गयी.
हंस पड़ती थी बस इतनी बात पर कि
आज उसकी बाली कल वाली से ज्यादा खूबसूरत है
और माँ की बिंदी उसके माथे पर बड़ी नहीं लगती.
खुश हो जाती थी बस इतनी बात पर कि
उसने मुझे तीन बार फोन किया और मैंने तीनों बार उठाया
और चहक कर बताती थी आज उसका दुपट्टा सर से एक बार भी नहीं सरका.
मैंने इश्क किया उस लड़की से जिसे तमीज़ नहीं थी. तहजीब नहीं थी
जो रात को सोते वक्त भी कपड़े उघड़ने का ख्याल रखती थी
जो मंदिर में प्रेमी की तरफ देखना भी भगवान का अनादर समझती थी
जो बोलती थी मंदिर में ये शोभा नहीं देता.
मैंने इश्क़ किया उस लड़की से जिसे पसंद था. फिल्मों से ज्यादा मुझे देखना
और एक बार देखकर हफ्तों तक खुशी से इंतजार करना अगली बार देखने का.
और जो उतावली रहती थी ये बताने को कि
आज मैंने कल से एक रोटी ज्यादा खाई
इसलिए आज मेरा पेट फूल के ऐसा हो गया जैसे पाँचवाँ महीना हो.
मैंने इश्क़ किया उस अल्हड़ लड़की से
जो किसी के पैरों की आवाज़ सुनकर फोन काट देती थी
वो अल्हड़ लड़की जिसने माँ की मार खाई और पापा का तिरस्कार
फिर भी निभाती रही मोहब्बत
करती रही इश्क़ बेहद , बेहिसाब , बेबाक , बिना तहजीब के
फिर अचानक बदल गई और रुआंसी होकर एक दिन बोली
जी सको तो जी लो. मर जाओ तो बेहतर होगा
ये दुनिया प्रेम के लायक बिल्कुल नहीं है.
जो चली गयी बिना हाल बताए,
बिना हाल सुनें एक सजी कार में बैठकर
अपना घर बर्बाद करके एक घर आबाद करने.
और हम हम रोते रहे बेहद, होते रहे बर्बाद बिना बात
देते रहे किस्मत को गालियाँ बेबाक, पीते रहे शराब बेहिसाब !