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Ratna Kaul Bhardwaj

Romance

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Ratna Kaul Bhardwaj

Romance

इन्तज़ार

इन्तज़ार

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जब तक तुम थे दिल में बसे

दुनिया अज़ीम थी आसमान जैसे


थे नज़ारे रंगीन व महकते

जैसे फूल सजे गुलदस्ते में


भरी थी ताज़गी साँसों में

उफान सी थी दडकनों में


मीठा दर्द था इन्तिज़ार में

एक एहसास था बसा ख्वाबों में


मुफलिसी थी पर गम न थे

मेरी हर मुश्किल में तुम साथ थे


अब जब तुम दूर हुए मुझसे

दर्द छलका मेरे आंसुओ से


सोचा शायद गए हो रूठ के

हाथ थामने फिर आओगे


हर साँझ डली पर तुम न आये

बादल छाए रहे उदासी के


कैसा गिला तुम ले कर बैठे

सोंचती हूँ हर साँझ सवेरे


एक बार पूछो अपनी दडकनों से

क्यों मुँह मोड़ा उन ख्वाबों से


कैसे वे मंज़र तुम भूल गए

जहां सपने देखे थे हमने मिलके


क्या इंतज़ार करूं, पूछों किससे

ज़ख़्म भरे मेरे किस मलहम से 


फ़कत एक बार मिल तो लो मुझसे

फिर चाहे रब वापिस बुला ले


छूटेगा नाता फिर इस इंतज़ार से

सुकून पाएगी रूह बेहिसाब दर्द से.....


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