इंसानियत
इंसानियत
बंटते-बंटते हम कितना बंट गए
इंसानियत की राह में बिल्कुल सिमट गए।
भाई की खातिर जो भाई जान लेता है
आज दौलत की खातिर भाई की ही जान लेता है
न ज़िन्दगी के वादे याद रहे, न कोई कायदे याद रहे
सिर्फ और सिर्फ उसे फायदे याद रहे
दर्द में देखकर भी मुस्कुरा कर चल गए
बंटते-बंटते हम कितना बंट गए
इंसानियत की राह में बिल्कुल सिमट गए।
जिस रोटी की खातिर, परदेस हो आता है
पेट भर जाने पे, कचरे में फेंक आता है
खुद भूखे रहकर कभी, किसी भूखे को खिलाया कीजिए
ये भी इंसानियत है, इसका भी हक़ अदा कीजिये
हिकारत भरी नजरों से देखकर क्यों चल गए?
बंटते-बंटते हम कितना बंट गए
इंसानियत की राह में बिल्कुल सिमट गए।
इंसान ने तो जन्म लिया, पर इंसानियत खोने लगी है
इंसान का नाम देकर, हैवानियत होने लगी है
कोई माँ-बाप को छोड़ आते हैं
कोई बच्चे को कचरे में फेंक आते हैं।
जोश में चलाकर अपनी गाड़ी से
बड़ी शान से बे-ज़ुबान को भी कुचल आते हैं।
सब कोसते हैं एक दूसरे को
पर फ़र्ज़ को भूल जाते हैं
हैवानियत के आगे, इंसानियत बदल गए
बंटते-बंटते हम कितना बंट गए
इंसानियत की राह में बिल्कुल सिमट गए।
