"इल्तिज़ा "
"इल्तिज़ा "
इतनी-सी इल्तिज़ा है प्रिये...
बेवजह ही बात को न बढ़ाया करो,
ग़र हो खता हमसे तो मेरे यारा,
बेतकल्लुफ़ ही मान जाया करो।।
इतनी सी इल्तिज़ा हे साहेब,
बेवजह ही बात को न बढ़ाया करो।।
लाल- पीले होकर मकां को,
नफ़रत का अखाड़ा न बनाया करो।
इतनी-सी इल्तिज़ा है जनाबे आली,
बेवज़ह बात को न बढ़ाया करो।।
निवाले से क्यों होते हो खफा,
इसके लिए शुक्रिया अदा करो।
इतनी-सी इल्तिज़ा हे मेरी,
मुहब्बत में मान जाया करो ।।
अपनों को अपनापन दिखाया करो,
मुहब्बत को मुहब्बत से ही अदा करो।
इतनी-सी इल्तिज़ा हे मेरी प्रिये ,
बेवजह बात को न बढ़ाया करो।।
प्रिये, मुस्कुराहट को ही,
मुखड़े का नूर बनाया करो।
इतनी-सी इल्तिज़ा है मेरी ,
बेवज़ह बात को न बढ़ाया करो,
चाहत है, मेरे पास आया करो ।।