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Sunita Katyal

Drama

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Sunita Katyal

Drama

इक था बचपन

इक था बचपन

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आज का बचपन भी क्या बचपन है

टी. वी और कंप्यूटर में

कुछ गुम सा हो गया है


इक था बचपन, हमारा बचपन

प्यारा सा,भोला सा बचपन

इक था बचपन, इक था बचपन


तब टीवी और फ्रिज न था

वहाँ कार न थी, और ए. सी न था

प्रकृति से हमारा नाता था


वहाँ आम भी थे और अमरुद भी थे

वहाँ खिन्नी भी थी और लीची भी थी

वहां बेर भी थे और बेल भी थे

वहां लोकाट और फालसे भी थे


करोंदों से लदा इक झाड़ भी था

झाड़ पर चढ़ी सेम की बेल भी थी

फलों और सब्जियों की रेलमपेल थी


वहाँ गाय भी थी, और भैंस भी थी

वहाँ घी, दूध, दही की बहार थी

वहाँ पिज़्ज़ा और बर्गर न था

फिर भी मजा ही मजा था


गर्मियों में टैंक में नहाते थे

आँधी आने पर जामुन और

अमिया बीनने निकल जाते थे

वहां जब बौछार पड़ती थी

सोंधी सी बयार बहती थी


रात को आँगन में पानी छिड़क कर

हम चारपाईयों पर लेट जाते थे

तारे गिनते गिनते हम

न जाने कब सो जाते थे


हम खेलते भी थे और पढ़ते भी थे

हम लड़ते और झगड़ते भी थे


वो बचपन आज भी याद आता है

सपनों में यदा कदा दिख जाता है

ये था हमारा प्यारा सा बचपन

भोला और न्यारा सा बचपन


इक था बचपन ,इक था बचपन।।


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