इब्तदा
इब्तदा
इब्तदा का दौर है
मैं भी एक इब्तदा
कर रहा हूँ,
तेरे गुनाहों को
मुआफ़ कर
तुझे खुद से
ज़ुदा कर रहा हूँ,
अब दिल तेरा
तेरा ही रहेगा
ये और बात है
मैं अपना दिल
दिल ऐ शाद
कर रहा हूँ,
तू ग़ैरों की बन
या उनकी महफ़िल
की रौनक बन
या फिर उनके
घरों की ज़ीनत बन
मैं तुझ पर छोड़ता हूँ,
मेरा कहा सिर्फ
इतना है
मैं तुझे अपनेपन से
आज़ाद कर रहा हूँ।

