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सीमा शर्मा सृजिता

Romance

4  

सीमा शर्मा सृजिता

Romance

इबादत

इबादत

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हां! तुम बिल्कुल नहीं हो 

सफेद घोडे़ पर बैठे 

सपनों के राजकुमार से 

मगर तुम जैसे भी हो 

भा गये हो मेरे मन को 

तुम नहीं जानते 

जिंदगी में ही नहीं 

तुम्हें रूह में बसाया है 

तुम्हारे आने से देखो 

कितने रंग भर गये हैं 

मुझ फीकी सी तस्वीर में

तुम्हारी मुस्कराहट में जादू है 

तभी तो चुम्बक की तरह 

खिंची चली आती हूं 

तुम्हारी मुहब्बत में मिलावट नहीं 

ये तो गंगा सी पावन है 

तुम्हें नहीं आती शब्दों की जालसाजी 

जानती हूं मैं, मगर 

तुम्हारी खामोश निगाहें 

बहुत बतियाती है 

तुम नहीं लाये कभी 

खूबसूरत फूलों का गुलदस्ता 

ना ही घुटनों के बल बैठकर 

किया मुहब्बत का इजहार 

मगर ओढ़ा है नखशिख तुमने 

मेरी मुहब्बत को, है ना! 

सराबोर हो प्रेम रस में मेरे 

यह कोई मामूली बात नहीं 

तुमने चाहा है चरम तक 

गवाह हैं चांद -तारे 

मेरी भी धड़कनें 

गुनगुनाती हैं केवल 

तुम्हारे नाम का संगीत 

तुम्हें तुम सा बनकर चाहना 

इबादत सा खूबसूरत है 

या कहूं इबादत ही तो है 

है ना! 

  


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