Hum tum
Hum tum
शब्दों के सागर में गोते लगाता हूँ..!
कुछ पंक्तियाँ कविताओं की ढूंढ लाता हूँ..!!
और कुछ इस तरह जी लेता हूँ एक जन्म फ़िर से..!
तेरी यादों की आँचल से ख़ुद को लिपटा हुआ पाता हूँ..!!
किसके हाथ में था, की मुट्ठी में बंद कर ले हवाओँ को ...!
कुछ तो बात है तुम में, की ख़ुद को तेरे गिरफ़्त में पाता हूँ....!!
कुछ पल का साथ हमारा सदियों तक चला हो जैसे..!
कभी बैठा पन्नों में क़ैद करने, तो देखूँगा कितना लिख पाता हूँ..!!
ख़ुद की परछाई का साथ छूटे, तो अंधेरों को दोष क्या देना..!
सूरज सर के सीध में हो, तो भी ख़ुद को बिन परछाई के पाता हूँ..!!
अक्सर ख़ुद में खो कर, तुमसे मिल जाता हूँ ..!
कुछ यूँ अपनी प्रेम कहानी को पूरा कर जाता हूँ ...!!