नीलम पारीक
Tragedy
हत्या तो हत्या है न
चाहे जिस्म की
चाहे रूह की
या फ़िर ज़मीर की
वो गर्भ में पलता शिशु हो
या दिल पलता अरमान हो
हत्या तो हत्या ही है न
फ़िर क्यों नहीं है तय
कोई सज़ा उनके लिये
जो हैं हत्यारे
सपनों के,
ख्वाहिशों कि
अरमानों कि
हत्या तो हत्या ही है न।
"कल्पना" (fan...
"प्रेम"
"बचपन की ओर"
"ज़िन्दगी-इक ख...
"पैसा"
"सफ़र ज़िन्दगी ...
"जादू"
"खौफ़नाक मंज़र"
"मेरे हीरो"
मेरा परिवार
मैं वो लड़की हूं जिस पर दरिंदगी के नित नये इतिहास रचे जाते हैं मैं वो लड़की हूं जिस पर दरिंदगी के नित नये इतिहास रचे जाते हैं
इतिहास वापस आता है, जो किया है वह इंसान यही पाता है! इतिहास वापस आता है, जो किया है वह इंसान यही पाता है!
तुम दोनों तो इश्क कर बैठे और मुझे ही आज तीसरा शख्स बना दिया! तुम दोनों तो इश्क कर बैठे और मुझे ही आज तीसरा शख्स बना दिया!
सरस्वती का सदा स्नेह है इन पर तभी बच्चों को संस्कार सिखाती! सरस्वती का सदा स्नेह है इन पर तभी बच्चों को संस्कार सिखाती!
बूढ़े मां बाप को मिल गया फिर जीने का जरिया, हम लोगों को भी इनकी पीड़ा से अवगत किया। बूढ़े मां बाप को मिल गया फिर जीने का जरिया, हम लोगों को भी इनकी पीड़ा से अवगत...
शराब की बोतल बनी मेरे खिलौने, बचपन ही में बचपन छिन गया। शराब की बोतल बनी मेरे खिलौने, बचपन ही में बचपन छिन गया।
क्यूं चेहरे पर एक चेहरा है, चीख के सच कह रहा है! क्यूं चेहरे पर एक चेहरा है, चीख के सच कह रहा है!
बिहार के एक छोटे शहर का लड़का जहाँ था साधनो का कड़का ! बिहार के एक छोटे शहर का लड़का जहाँ था साधनो का कड़का !
रिश्तों को संजोये रखने के लिए... उन्हीं रिश्तों में घुटती रही स्त्रियाँ! रिश्तों को संजोये रखने के लिए... उन्हीं रिश्तों में घुटती रही स्त्रियाँ!
देखा हालात आजाद भारत का इक छोटे से पल के दृश्य में । देखा हालात आजाद भारत का इक छोटे से पल के दृश्य में ।
काश, इस दुनिया में हर इंसान बच्चा होता! काश, इस दुनिया में हर इंसान बच्चा होता!
दर्द की इंतेहा पार हुई जब सुलगने लगी मन की लकड़ी! दर्द की इंतेहा पार हुई जब सुलगने लगी मन की लकड़ी!
लोकतंत्र का बना अचार फैल गया है भ्रष्टाचार! लोकतंत्र का बना अचार फैल गया है भ्रष्टाचार!
कहीं औरत को देवी बनाया जाता है, कहीं औरत पर आत्याचार किया जाता है ! कहीं औरत को देवी बनाया जाता है, कहीं औरत पर आत्याचार किया जाता है !
कहीं राजभवन को जगमग करता, किसी चिराग़ से कम तो नहीं। कहीं राजभवन को जगमग करता, किसी चिराग़ से कम तो नहीं।
फिर से नम आँखें ,दो रोटी की मोहताज , एक हाथ में कलम ,दूजे हाथ में कई राज़। फिर से नम आँखें ,दो रोटी की मोहताज , एक हाथ में कलम ,दूजे हाथ में कई राज़।
मूर्ति नहीं मैं हूं इन्सान क्यों रहा नहीं ये तुमको भान ! मूर्ति नहीं मैं हूं इन्सान क्यों रहा नहीं ये तुमको भान !
तुम्हारी गढ़ी छवि को अपने व्यक्तिव से, आहूति देने अंतत: तुमसे विदा होने। तुम्हारी गढ़ी छवि को अपने व्यक्तिव से, आहूति देने अंतत: तुमसे विदा होने।
जिस लिबास ने इज्जत बचाने को तन ढका क्यों उसी को तार तार कर देते हैं लोग जिस लिबास ने इज्जत बचाने को तन ढका क्यों उसी को तार तार कर देते हैं लोग
मुफलिसी की रेत में दबकर अन्नदाता ही सदा सोता है। मुफलिसी की रेत में दबकर अन्नदाता ही सदा सोता है।