हसरत
हसरत
हसरत है दिल में तुम्हें पाने की,
कुछ पल तेरी ज़ुलफ़ो के साए मे बिताने की।
तेरी निगाहें-जमाल जो पड़ जाए मुझ पर,
बीमारे-इश्क को करार आ जाए।
ए सादग़ी-ए-हुस्न की मलिका,
ज़रा पलकें तो उठाईये,
तलबग़ार है तुम्हारे नैयनों की मदिरा के,
दो बूँद ही सही ग़र मिल जाए तो
दिले-बेताबी को क़रार आ जाए।
बढ़ रही है दिले-बेताबी,
जुनूं की हद तक चाहेंगे तुझे हम।
रफ़ीक ना सही रक़ीब तो ना बनिए जाना
शब़े-इन्तज़ार में तड़फ़ रहे है हम,
यूँ जब्र ना किजिए, कुछ तो रहम किजिए।
इक बार ही सही शब़े
माहताब बन कर आ जाइये,
कहीं दमें-आखिर भी ना निकल जाए
आ जाइये..अब तो आ जाइये।