हरसिंगार
हरसिंगार
झड़ने लगे हरसिंगार
महक उठी रात और सुबह
सफ़ेद नारंगी फूलों से ढँकी
सुबह धरती कितनी ख़ूबसूरत हो जाती
मन मचल उठता चाँद की रोशनी में
रह रह कर गिरते हुए हरसिंगार के नीचे बैठने को ,
लगता मानो चाँद रुक रुक कर चाँदनी बरसा रहा
भींग जाता तन और मन इस बारिश में
तुम्हारी याद आती है,सोचना चाहती हूँ तुमको
लेकिन अच्छी यादों पर बुरी यादें हावी हो जाती
खिन्न हो जाता मन ,
फ़ूल शूल बन कर चुभने लगते
सारी सुंदरता ,सारी ख़ुशबू कहीं खो सी जाती
नहीं भाते अब हरसिंगार !!!!