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Dravin Kumar CHAUHAN

Romance Fantasy

4  

Dravin Kumar CHAUHAN

Romance Fantasy

हरजाई

हरजाई

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तू भी निकाल गई हरजाई समय 

की भांति बदल गई वादा किया 

था साथ निभाएगी पर मौसम की 

तरह बदल गई तुझे भी याद 

आता होगा वह साथ में बैठकर 

खाई गई काम वह यादें पनघट 

ओ लंबी रातें जो तूने मेरे साथ 

गुजारी थी या नया साथी पाकर 

हमें भूल गई चल जैसा भी है तूने 

हमें एहसास तो कराया कि स्वयं 

के सिवा कोई नहीं अब जब 

कभी समय मिले तो अकेले में 

शीशे के सामने बैठकर खुद को 

निहारना जरूर, तू है वही या 

कोई हरजाई, प्यार किसी के 

साथ जीवन किसी के साथ , 

थी कोई वजह तो हमें बताया 

क्यों नहीं, था कोई उलझन तो 

हमें समझाया क्यों नहीं, हर 

मसले का हल निकलता है 

मिले थे बड़ी शिद्दत के साथ यूं 

ही बड़े प्यार से अलग हो जाते,

थे अगर कोई वजह तो समझाए 

क्यों नहीं, अब भरोसा किस पर 

करूं ना करूं यह विषय भारी है 

बता तेरी तरह कोई और निकल 

गई हरजाई तो मैं क्या करूंगा 

या खुद को हम भी समय के 

साथ बदलना सीख लुं अब बता

 तू भी निकल गई हरजाई मैं 

भी समय के साथ बदलना सीख 

जाऊं क्या,

 बता मैं अब करूं क्या 



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