गांव घूम आते हैं द्रविण कुमार चौहान
गांव घूम आते हैं द्रविण कुमार चौहान
गांव घुम आते हैं
तू है हम हैं चल घूमते हैं
बरसात का मौसम है सावन
अभी-अभी निकला है भादो
आया है बरसात जोरों पर है
पहाड़ों पर जंगलों में अरे नहीं
चल अपने गांव घूमते हैं अपने
खेत खलिहान देख आते हैं
शहर से दूर गांव भ्रमण करते हैं
प्यार है और बना रहेगा कुछ पल
अपनों से मिल आते हैं
श्री कृष्ण का जन्म उत्सव भी
गांव में मना आते हैं
चल गांव घूमते हैं शहर बहुत
देख ली थोड़ा समय अपने गांव
को भी दे आते हैं जो हमें हमारी
अपनी पहचान दिया उसके साथ
थोड़ा वक्त निकल आते हैं
गांव घूम आते हैं अपने लोगों से
मिल लेते हैं थोड़ा स्थानीय मंदिरों
में माथा टेक लेते हैं तु है हम हैं
चल घूम आते हैं गांव को कुछ
पल का समय दे आते हैं
जहां से जुड़े हैं हम जहां से जुड़ा
है हमारा वजूद जो अपना
पहचान है गांव को भी परिवार
को भी अपनों को भी सबको
समय देना है बरसात का मौसम
है हरियाली है खुशनुमा मानसून
है तू है हम हैं चल गांव बुला रहा
है थोड़ा घूम आते हैं पूरी दुनिया
सैर कर ली लेकिन गांव सी
खुशबू कहीं ना मिली
गांव सी सुकून कहीं नहीं मिली
गांव सा अपनापन कहीं ना मिला
चल गांव घूम आते हैं कुछ अपने
आप से कुछ अपनों से कुछ
अपने जननी से मिल आते हैं
चल गांव घूमते हैं
द्रविण कुमार चौहान
