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मिली साहा

Abstract

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मिली साहा

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हर पल एक नया वजूद नया चेहरा

हर पल एक नया वजूद नया चेहरा

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हर पल एक नया वज़ूद एक नया चेहरा बदलता इंसान है,

आईना भी इस बदलते किरदार को देखकर बड़ा हैरान है


दिखता है जो चेहरा सामने वो उसका अपना चेहरा नहीं,

अपने ही वज़ूद से हर इंसान यहाँ बना रहता अनजान है,


जो चेहरा दिखाना चाहता है सभी को दिखता तो वही है,

फिर खुद के वज़ूद से उठते धुएं को देखकर क्यों हैरान है,


वजूद पर वजूद की परत चढ़ी और कितने परत चढ़ाएगा,

असली पहचान क्या है तेरा किरदार भी तुझसे परेशान है,


विश्वास एहसास अपनेपन के नाम पर अपनों को ठगना,

कभी पूछ कर तो देख खुद से तू क्या यही तेरा ईमान है,


औरों को छल कर वास्तव में तू तो खुद को ही छल रहा है,

सच्चाई की राह ना चलकर क्यों हो रहा खुद से बेईमान है,


एक दिन तेरा बदलता वजूद ही तेरा साथ नहीं निभाएगा,

तेरे अंदर सुलगता ये वजूद ही तुझे कर देगा लहूलुहान है,


नश्वर इस तन पर न अहंकार कर इतना सब व्यर्थ जाएगा,

तेरा सब कुछ यहीं धरा रह जाएगा वक्त का यही पैगाम है,


पल-पल बदलता वजूद तेरा तुझे अंधेरे की ओर ले जाएगा,

फिर अंधेरा भी पूछेगा तुझसे बता यहाँ तेरी क्या पहचान है।


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