हर दिन होली
हर दिन होली
क्या बस एक दिन ही
होती है होली,
या हर रोज ही,
है अन्तःकरण में एक होली,
शायद खेल नही पाते हम,
या आता नही खेलना,
तो नही हो पाता वो मिलन,
जो कर देता है आनंदित,
बस खुद के कण कण को,
रंग देता हैं हमे बस,
प्रियतम के ही रंग में,
दे जाता है जो
बस प्रेम ही प्रेम
बस प्रेम ही प्रेम,
शायद दूर है हम सब,
होलिका दहन के इस सत्य से,
जहाँ बस दहन ही करना है,
हर द्वेष,दुर्भाव,कुमति को,
मिटते ही ये नकारात्मक भाव,
बस हो जाती है फिर होली भी,
रंग में प्रियतम के रंग,
बन जाती है मतवारी,
बस प्रियतम की हमजोली,
न कुछ रहता फिर शेष,
हो जाता हैं नित मिलन विशेष,
फिर क्या,हर पल बस,
प्रिय मिलन की होली,
प्रिय मिलन की होली।।