हक़ीक़त उनकी
हक़ीक़त उनकी


जो कहना चाहते उनसे,
वो भाव जुबां पर ला नहीं सकते,
मचलते है जो उनके ख़्वाब,
हक़ीक़त उनकी,
उन्हें हम पा नहीं सकते।
बड़ा खूब है उनसे
मेरा नए दौर का इश्क़,
वक़्त से देर है दोनों,
पर दोष किसी को दे नहीं सकते,
मुहब्बत निर्मोही जो रिश्तों में,
उन्हें बराबर लिख नहीं सकते।
लुभाती है उनकी बातें,
उन्हें सुनने को जीते हैं,
पर वो जो कहना है उन्हें हमसे,
वो हमसे कह नहीं सकते।
उनकी आँखों में हर पल है,
पर दिल में हो नहीं सकते,
वो जो कहना चाहते उनसे,
वो भाव जुबां पर ला नहीं सकते।
नदी के किनारों सा है ये रिश्ता,
साथ तो है हर-पल में,
पर एक दूसरे से मिल नहीं सकते,
कृष्ण और राधा सी किस्मत,
जुदा जो हो गए कल में,
कम्बख़्त रो भी नहीं सकते।
क्या लिखूं उनपे मेरी कविता,
वो सार है मेरा मगर
शीर्षक हो नहीं सकते
जो कहना चाहते उनसे,
वो भाव जुबां पर ला नहीं सकते,
मचलते हैं जो उनके ख़्वाब।
हक़ीक़त उनकी,
उन्हें हम पा नहीं सकते,
बड़ा खूब है उनसे मेरा
नए दौर का इश्क़,
वक़्त से देर है दोनों,
पर दोष किसी को दे नहीं सकते,
मुहब्बत निर्मोही जो रिश्तों में,
उन्हें बराबर लिख नहीं सकते।