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Mahendra Kumar Pradhan

Tragedy

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Mahendra Kumar Pradhan

Tragedy

काला सर्प

काला सर्प

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मैंने बचपन में देखे थे यहां घनी हरियाली

और बीच में कच्चा सड़क उबड़खावड़वाली ।

सरणी के दोनों ओर कहीं झुरमुट तो कहीं घनवन

वन्य जीवों के आवाजों में इस राहों में होते थे कम्पन ।


इसी राहों में कितने मोड़,हर मोड़ की कहानी ,

कितने सपने देखे हमने बनकर राजा रानी ।

पेड़ों के नीचे ,झाड़ियों के पीछे उभरती जवानी

छुप छुप के रास रंग में करती थी मनमानी ।


आज जवानी गुजरी है बस ,चालीस के उस पार

पर भूला नहीं वो मुलाकातें, दो दिलों की प्यार ।

वो पारो बन गई मैं बन गया एक और देवदास

यह भाग्य की विडम्बना मुझको बना गया क्रीतदास।


आज कितना परिवर्तन है मेरे उसी पथ पर

वन गायब और पहाड़ी पर नंगे नंगे पत्थर ।

छेद कर जंगल को यह पक्का सड़क हाय

घनी हरियाली लूट गया विकास के रथपर ।


बचपन के उन वादियों को आज ढूंढे मेरे नैन

इस चमकीले पथपर मुझे सुख मिले न चैन ।

मोहब्बत के वो हसीन पल, वो स्थल यहां गुम है।

जवानी के संतक नहीं,यहां सिर्फ वाहनों का धूम है।


ये सड़क है पर लगता है विषधर काला सर्प है ,

दंश मारा है मेरे मधुरागिणी भरे वादियों में ।

लूट कर अमृत घुल दिया है हलाहल उत्कट

मेरी स्मृति, मेरे जीवन, मेरे प्रेम के पावन नदियों में ।



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