काश
काश
ए ज़िन्दगी तू कितनी हसीन है
यहां वहां हर समां
लम्हा लम्हा बिखरी सी है
लोग न जाने क्यूं सूख कर
पपड़ा गए रिश्तों में तुझे कुरेदते हैं
तू तो कायनात में हर जगह
रेशा रेशा सिमटी सी है
वो क्यूं ठिठक कर जकड़ गया
उन एहसासों में जो
कभी उसके अपने न हुए
ए ज़िन्दगी एक आहट तो करती
किसी अपने की उसकी सुगबुगाहटों में
काश वो लम्हा रुक जाता
कोई उम्मीद उसे थाम लेती
काश वो लम्हा रुक जाता
कोई उम्मीद उसे थाम लेती।