संहार में सृजन
संहार में सृजन
संहार में ही तो सृजन है,
यही तो गतिमान प्रतिपल है ।
नवजीवन की नींव संहार में ही तो रची जाती है ।
एक नव समाज की नींव भी तो इसी दौर में गढ़ी जानी है ।
देखो !! वर्तमान में कितना कुछ है बदल रहा ।
चहुं ओर फैली आपदा में कितना कुछ हर निखर रहा ।
विषमताओं में संभावनाओं की कमी नहीं है ,
ज़रा !! देखो तो पृथ्वी कितने नए रूपों में ढल रही है ।
पहली बार हम सभी के हित आपस में जुड़ रहे हैं ।
तुम ठीक हो तो हम ठीक हैं । सभी यही कह रहे हैं ।
ये आत्म मंथन का दौर है ।
धैर्य, साहस आत्म शक्ति ही तो हमारे सिरमौर हैं ।
हम सब अपने शुभ कर्मों की आहुति इस यज्ञ में नित देंगे ।
कोई भी दुखी इस समय वंचित न रहे इस प्रण पर डटे रहेंगे ।
जहां अन्य देशों ने इस महामारी के सामने घुटने टेक दिए हैं ।
वहीं भारत इस आपदा से लोहा ले रहा है ।
गौर से देखो !! इस संहार में भी नवीन मजबूत भारत का सृजन हो रहा है ।
इस संहार में भी नवीन मजबूत भारत का सृजन हो रहा हर।
