द्रौपदी
द्रौपदी
तेरी व्यथा की कथा, है क्यों अभी भी अनसुनी सी
चीर ही है बस तेरी ख्याति का कारण क्यों?
"अनल निर्मित, ताप संचित,
पितृ मोह में रक्तरंजित ",
भी तेरी पहचान होनी चाहिए।
है सभी तूने सहा हर बार है।
बालपन, यौवन, जरायु,
तेरे हिस्से में रहा अपमान है।
जन्म तेरा पितृहित प्रतिशोध था,
ले गया समस्त श्रेय तेरा ही भाई।
चुना तूने कर्ण को अपने हृदय में,
किंतु तेरी नियति में तो पार्थ ही था।
हाय! जीवन की ये निष्ठुर मार देखो,
जिस घड़ी मिलना था तुझे सम्मान,
जिस समय तू संगिनी बनती धनुर्धर की,
वहां भी बंट गयी तू।
हे पांचाली!
क्यों तुझे इतना साहस मिला?
तेरा ऐसा भाग्य, क्या तेरे धैर्य का था सिला?
बन पत्नी पांच पुरुषों की तूने क्या पाया?
पुनः पुनः तेरे हिस्से में अपमान आया।
तू बन गयी उन पांचो की एकमात्र दासी,
ये तय है।
जब धर्मराज ने तुझे लुटाया,
दुर्योधन ही क्यों हुआ पापी और अधर्मी?
तेरा चीर तो तेरे अपनों ने कराया।
फिर भी धर्मराज ने सम्मान एवं स्वर्ग पाया।
भीम और अर्जुन के पुत्र हुए महान।
तेरे पुत्रो ने मात्र हृदयविदारक वध ही पाया।
तुझे ही युग-युग में विध्वंस का कारण है कहते।
वस्तुतः ये अपनी मानसिक दुर्बलता का बोझ तुझे है देते।
"तू है पावन, तू है पवित्र" कह गए मुरारी।
किन्तु हे कृष्ण!
क्या नारी जीवन कष्ट का परिमाण है?
सहे सब "वो",
परन्तु "पांडव" महान है?