होर्डिंग्स
होर्डिंग्स
मैं आजकल होर्डिंग्स से सबसे ज्यादा बातें करता हूँ,
हँसता हूँ , नाराज़ होता, मुस्कुराता हूँ,
सोचता, नोचता खँरोचता, गुम हो जाता हूँ,
एक तरह से सही भी है,
आखिर शहर मेरा सबसे ज्यादा वक़्त,
ट्रैफिक में निगल लेता है,
आसपास बजते तेज़ हॉर्न्स,
लौंडों की धड़धड़ाती बुलेट,
हसीनों की हिरणी जैसी स्कूटियों,
हिंदी फिल्मों के विलन जैसी गुर्राती,
खूंखार नगर निगम की बसों के बीच,
जब मैं खुद को अकेला पाता हूँ,
तब मैं होर्डिंग्स से बातें करता हूँ,
ऐसा लगता है वो सब मेरी तरफ,
एक आस भरी निगाह से देख रहे हैं,
लुभा रहे हैं , सिडूस कर रहे हैं,
पुराणी थ्रिलर फिल्मों की कैबरे डांसर को,
एक ख़ास करैक्टर का इंतज़ार होता था ना,
और जब वो सिगरेट सुलगा कर,
मैक्सिकन हैट के साथ एंट्री लेता था,
कांगो की फॉक्स ट्रोट बीट और,
फलेमेंको गिटार की स्ट्रमिंग के साथ,
तमाशा शुरू होता था,
बस उसी तरह वो होर्डिंग,
जिसमें करीब ही बनी इक नयी सोसाइटी,
जिसमें एक बिल्डर सपनीली ज़िन्दगी के सपने,
पिन करके छोड़ रहा है,
वो इंटरनेशनल स्कूल का विज्ञापन,
जो ये दावा करता है मेरे बच्चों को कलाम,
जावेद जाफरी या एल्विस बनाने का,
वो रेस्टोरेंट जहाँ का थाई क्यूजिन,
माँ के हाथ की मुलामियत भुला देता है,
या ये वर्ल्ड क्लास जिम्नेजियम,
जहाँ रुसेल अर्नाल्ड अंदर जाये तो,
अर्नाल्ड श्वर्जनेगर बन के निकले,
और हाँ, वो इश्योरेंस लेना भूल गया,
कहीं अगले मोड़ पर यमदूत,
ओला लेकर मेरा इंतज़ार कर रहे हो तो,
मगर, ये उस तरह इश्क़ करना नहीं सिखाते,
जैसा रोज़ लोकल के सफर ने हमको सिखाया था,
मगर, ये वो बेखुदी नहीं देते,
जो हॉस्टल की पहली पार्टी में मिली थी,
मगर, ये वो दीवानगी से चिल्लाना नहीं सिखाते,
जैसे इंटर कॉलेज क्रिकेट मैच के क्लाइमेकस,
मगर, ये हक़ से झगड़ना भी नहीं सिखाते,
जो पतंग के पेंच कट जाने पर मोहल्ले में होते थे,
ऐसे कई सवाल मैं इन होर्डिंग्स से करता हूँ,
मगर ये मुस्कुरा के टाल जाते हैं,
कोई लुभावना ऑफर दिखा कर,
मैं भी मुस्कुरा कर आगे बढ़ जाता हूँ,
अगले होर्डिंग की तरफ,
फिर भी मैं आजकल होर्डिंग्स से,
सबसे ज्यादा बातें करता हूँ,
शायद किसी दिन जवाब मिल जाये।।
