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Govind Narayan Sharma

Fantasy

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Govind Narayan Sharma

Fantasy

होली की मस्ती फागुन संग

होली की मस्ती फागुन संग

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कौन रंग फागुन रंगे, रंगता कौन वसंत?

प्रेम रंग फागुन रंगे प्रीत कुसुमल वसंत। 


चूड़ी भरी कलाइयाँ औरखनके बाजू-बंद, 

फागुन लिखे कपोल पर रस से भीगे छंद। 


फीके सारे पड़ गए पिचकारी में भरे रंग, 

अंग-अंग फागुन रचा साँसें हुई ताल मृदंग। 


धूप हँसी बदली हँसी हँसी पलाशी शाम, 

पहन मूँगिया कंठियाँ टेसू हँसा ललाम। 


कभी इत्र रूमाल दे कभी फूल दे हाथ, 

फागुन बरज़ोरी करे करे चिरौरी साथ।


नखरीली सरसों हँसी सुन अलसी की बात, 

बूढ़ा पीपल जागकर खाँसता मझली रात। 


बरसाने की गूज़री नंद-गाँव के नन्हे ग्वाल, 

दोनों के मन बो गया फागुन कई सवाल।


इधर कशमकश प्रेम की उधर प्रीत मगरूर,

जो भीगे वह जानता,फागुन के प्रेम दस्तूर।


पृथ्वी,मौसम गुल्म,लता रसाल भौरे,तितली, 

धूप, सब पर जादू कर गई ये फागुन की धूल। 


फागुन का रंग और नशा सब पर चढ़ जाये,

सब संग प्रीत बढ़े यही होली रंगोत्सव का पैगाम! 



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