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हँस रहे थे जब वो...

हँस रहे थे जब वो...

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हँस रहे थे जब वो ठहाके मार के

हम देखते रहे उन्हें, एकटक निहार के,


बस गए दिल में वो पहली ही नजर में

हमने पाया है उन्हें अपना दिल हार के,


लग रहा है जैसे छू रहे हों आसमान

उड़ रहे हैं मानो हम पंख पसार के,


मिले हो तुम तो ज़िन्दगी बदल गई

आ गए हैं मानो अब दिन बहार के,


हो चुकी है हमें सुध जब से उनकी

बैठे हैं तब से अपनी सुध बिसार के,


हरेक नजर आकर टिकती है उन्हीं पर

रखते हैं वो खुद को क्यूँ इतना सँवार के?


निकल नहीं पा रहे हम उनके ख्यालों से

देखा हमने खुद को कईं दफ़ा पुकार के,


भर लिया है हमने उनको निगाहों में

औ' फैंक दी है उनकी नजर उतार के,


जाने कौन सी हमें हो गई है बीमारी ?

शायद हो गए मरीज़ हम उनके प्यार के।



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