हमें इल्म न था
हमें इल्म न था
मुहब्बत के साये में तेरे इतना महफ़ूज रहेंगे इल्म न था,
तेरे इश्क की चाह में हम ख्वाब देखेंगे इल्म न था।
मेरे खयालातों से सजी हुयी हुई है हर बज्म तेरी,
तेरी दिल की बेचैनियाँ इतनी बढेगी हमें इल्म न था।
लब्ज़ों में मुझे बयान करते करते थक गये होंगे अब तुम,
आँखें तुम्हारी ख्वाब देखती है मेरा हमें इल्म न था।
याद कर तेरे अहसासों को दिल बहुत उदास हो जाता है,
तुम कब आहिस्ता आहिस्ता मेरी चाहत बन गये हमें इल्म न था।
एक बार रूह का रूह से मिलन हो ये छोटी सी ख्वाहिश है मेरी,
तेरी बाहों की पनाह में मिलता है इतना सुकून हमें इल्म न था।