हमारी हेडफोन से दोस्ती
हमारी हेडफोन से दोस्ती
आज हमको अपनी हेडफोन से दोस्ती बताने के बारे में बताने का मनहै।
हाय अपनी में क्या व्यथा सुनाऊं।
सोचती थी कभी ना करूंगी हेडफोन का इस्तेमाल।
कई वर्षों तक हमने नहीं करा
इसका इस्तेमाल।
फोन के साथ आने वाले हेडफोन ऐसे ही पड़े रह गए।
लगता था ऐसे मुंह चिढ़ा रहे हैं
देखते हैं कब तक तुम हमसे दूर रहती हो।
हमने भी ठान लिया था हम तो फोन ऐसे ही सुनेंगे।
मगर जब एक कमरे में दो जने अपने फोन पर कुछ सुनते हैं तो आवाज एक दूसरे से टकराती है ।
जरूरी नहीं है कि सबको एक जैसा सुनना हो।
हम अपना फोन बंद कर देते थे मगर मेडिकल, सामाजिक समाचार और बिना इंटरेस्ट की बातें सुनना पसंद नहीं आता था।
एक दिन वापस डब्बे पर नजर गई देखा हेडफोन हमको चिढ़ा रहा है।
अपने पास पास बुलाकर समझ रहा है।
अरे भाई अब तो कान में लगा लो कुछ अपने मन की बात भी देखो सुन लो।
हमसे भी थोड़ी दोस्ती कर लो। मनपसंद सीरियल देखोगे। मनपसंद गाने सुनोगे ।
कोई टोकने वाला भी नहीं होगा।
मरता क्या ना करता ।
हमने भी हेडफोन से दोस्ती कर ली, और साथ में अपने पति को भी हेडफोन से दोस्ती करवा दी।
अब वेअपना मेडिकल पढ़ाई का और समाचार और अपनी पसंद का सब सुनते हैं।
और हम भी अपनी पसंद की सीरियल देखते हैं।
हेडफोन से दोस्ती करके हमको अच्छा लग रहा है।
मगर हमने भी एक नियम बनाया है।
सीमित समय पर ही इसका इस्तेमाल करेंगे।
आपसी रिश्तों में इसको आने ना देंगे।
इसका डटकर फायदा उठाएंगे।
तभी हमारे हेडफोन से दोस्ती हमारे काम आएगी।
क्या कहना है आपका समीक्षा देकर बताइए हमने सही करा या गलत यह हमको समझाइए। स्वरचित कविता
