हम तुम्हे हर बार गायें
हम तुम्हे हर बार गायें
चोट गायें पीर गायें, या तुम्हारा प्यार गायें ।
दिल की बस हसरत यही है, हम तुम्हें हर बार गायें ।।
गीत छेड़े थे मिलन के, आज कुछ बेकल खड़े हैं ।
मन के' इस एकांत घर में, आज भी विह्वल पड़े हैं ।
तुम ही' कह दो किस तरह हम, इस समय की मार गायें ....
चोट गायें..........।।
रौशनी ने हाथ खोले, और जिद भी कुछ न मानी ।
फिर भी शम्मा से न छूटी, इन अँधेरों की निशानी ।
तुम ही बोलो जिद लिखें या प्यार का उपकार गायें ......
चोट गायें.........।।
आ हमारे मन के आँगन, को नया आकार देना,
और गीतों की धुनों को, तुम ही अब शृंगार देना ।
कंठ के हर सुर में आना, ताकि कुछ मनुहार गायें.....
दिल की' .........।।
तुम गए हो आओगे भी, मन को है विश्वास पूरा ,
रह न जाए देखना तुम, स्वप्न का मौसम अधूरा ।
जन्मों जन्मों तक यही हम, भाग्य से तकरार गायें....
दिल की.............।।