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Rahul Molasi

Abstract Tragedy

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Rahul Molasi

Abstract Tragedy

हम मरते है

हम मरते है

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वो जो बन के अनजान, पूछते हैं। हाल मेरा,

दिए जख्म उन्हीं के हैं।, जिनसे हम मरते हैं।


मिटा चुका हैं। एक ज़माने से, वो हर निशां मेरा

और हमें इंतज़ार उनका की वो, आए हम मरते हैं।


आज कल या फिर परसो, होगा ख्वाब पूरा मेरा

न~उम्मीदी में तलाशते उम्मीद को, रोज़ हम मरते हैं।


मिला एक रोज़ जो, हंस के पूछता हैं। हाल मेरा

जो ना मिलने पे कहता था, मिलो वरना हम मरते हैं।


आज सरे बाज़ार, वो कर ही आया मोलभाव मेरा

हक से कहता हैं। कि बिको, नहीं तो हम मरते हैं।


रोज़ दुआ में वो खुदा से, मांगता होगा भला मेरा

शाकिर* हूं मै उसका की, अब हम मरते हैं।


एक उम्र बिता दी, उसे समझाने में रिश्ता उसका मेरा

कह दो ना करें तकल्लुफ आने का, कि हम मरते हैं।


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