हम मजदूर जो ठहरें
हम मजदूर जो ठहरें
मीलों दूर को छोड़ के आएं
हैं अपना घर द्वार
करता खून पसीना एक कि
खुशी रहे परिवार
कि हम मजदूर जो ठहरे
कि हम मजदूर जो ठहरे।।
माँगू छुट्टी घर जाने को
सुनते ना फरियाद
उल्टे गाली डांट लगा दे
मालिक साहूकार
कि हम मजदूर जो ठहरे
कि हम मजदूर जो ठहरे।।
नहीं है मानवता इस जग में
होता ना सत्कार
तू तू करके बात करे सब
और करे दुत्कार
कि हम मजदूर जो ठहरे
कि हम मजदूर जो ठहरे।।