हम मिलें न मिलें
हम मिलें न मिलें
कैसे कह दें
आशाओं की शाख पर
अहसासों के सावन में फूल खिलें न खिलें
हम तुम
ताजिन्दगी ख्वाहिशें लिए हुए
पल पल तरसते रहे अपने मिलन को
और मुकद्दर की बदनसीबी से हम मिलें न मिलें-
इस राह-ए-मोहब्बत पर
तन्हा चलना कहां होता है आसान -
चुभते हैं पथरीली धरती के नुकीले पत्थर
और कितना भारी होता है तारों से आच्छादित आसमान -
वो पल
जो तुम्हारी श्वासों की खुशबू से महके थे-
वो पल
जो तुम्हारी देहाग्नि की ज्वाला में
अनजाने दहके थे-
वो पल
जब हमारे दिल
एक नादान चिड़िया की तरह
प्यार में करते हुए कलरव चहके थे-
और वह पल
जो खामोशी की चादर
ओढ़ कर
सपनों की सेज पर बहके थे-
मोहब्बत के बाग में
यादों के दरख्तों पर उगते हुए पात-
जीवन की संध्या की बेला में करते हुए प्रतिघात -
कैसे हो सकता है
आज भी तुम्हारे झलकते अक्स
और आती हुई खुशबू-ए-बयार से हिलें न हिले-
हम तुम
ताजिन्दगी ख्वाहिशें लिए हुए
पल पल तरसते रहें अपने मिलन को
और मुकद्दर की बदनसीबी से हम मिलें न मिलें।