हम भी तुम भी
हम भी तुम भी


कोसों दूर है एक दूजे से
मगर हर रात निहारते है!
आसमां के उस चाँद को
हम भी तुम भी।
न विश्वास की आशा है,
न समर्पण की भावना कोई !
शिकायतें करने से बाज नही
आतें हम भी तुम भी।
वफ़ा की बातें आखिर क्यों करते हो,
क्या तुम नही जानते!
बेवफाई की राहों पर ही तो
चलते है हम भी तुम भी
सावन में भी पतझड़ का आभास होता है,
तन्हाई में भी उदासी की प्यास होती है!
क्या इसें ही इश्क़ कहतें है
हम भी तुम भी।
कभी तोड़ देते है,
कभी जोड़ देते है !
फिर एक दूसरे को आखिर बिखरे
क्यों नही देते है हम भी तुम भी।
अनगिनत कसमें खाते हैं
बेपनाह चाहतों की !
फिर क्यों इश्क़ को
आजमाते है हम भी तुम भी।
संग रहने का अब तक
कोई रिश्ता बना ही नहीं।
आओं मिलकर फिर
बिछड़ते हैं हम भी तुम भी।