हिंदी
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अपनों को पराया करने की प्रथा पुरानी है।
न सर चढ़ाने की न सर से उतारने की ।
साथ चलाने की प्रथा आजमानी है।
हिंदी कहलाने में सहजता दिखानी है ।
हिंदी की गरिमा बढ़ानी है।
अ से अज्ञानी को ज्ञ से ज्ञानी बनाती।
अपनों को पराया करने की प्रथा पुरानी है।
न सर चढ़ाने की न सर से उतारने की ।
साथ चलाने की प्रथा आजमानी है।
हिंदी कहलाने में सहजता दिखानी है ।
हिंदी की गरिमा बढ़ानी है।
अ से अज्ञानी को ज्ञ से ज्ञानी बनाती।
हिंदी हमें संस्कारी बनाती।
हमें संस्कारी बनाती।