हिंदी की बिंदी
हिंदी की बिंदी
हिन्दी की बिंदी सुन्दर लगती है, ज्यों सुहागिन के माथे बिंदी सजती है।
अ, आ, अं और क, ख, ग से सारे शब्दों ने लिया जन्म है,
हिन्दी का अस्तित्व अद्भुत, अजर और अमर है।
हिन्दू- मुस्लिम, सिख - ईसाई आपस में सब भाई - भाई, हिन्दी ने ये बात सिखाई।
हिन्दी सब को मन से जोड़ती, हमें सभ्यता की ओर मोड़ती ।
हर हिन्दुस्तानी को प्यार हिंदी से, संस्कृति की पहचान हिंदी से।
हर दिन, हर पल रहते हम हिन्दी से दूर, विदेशी भाषाएं बोल-बोल कर
उच्च साबित करते हैं, हिंदी में ना बात करके हिंदी को अपमानित करते हैं।
हिन्दी की बहना उर्दू ने हमको शायरी सिखाई है, फिर कैसे कह दे
हम हिन्दी अपनी नहीं पराई है।
हिन्दी बोलने - पढ़ने से भला क्यों आती हमको शर्म है,
हिन्दू संस्कृति ही सबसे बड़ा धर्म है।
मातृभाषा यही है, राष्ट्र भाषा यही है, कैसे ना हम इसका मान करें,
आओ मिल कर सब हिंदुस्तान की हिंदी का उत्थान करें।
एक दिन हिंदी दिवस मना कर तीर क्या कोई मार पाएगा,
जो है सच्चा हिन्दू वो सदा ही हिंदी के गुण गाएगा।
सम्मानित करो राष्ट्र भाषा
हम सब की यही अभिलाषा