हीर रांझा
हीर रांझा
हीर कहें राँझे से इन ज़ख़्मी पैरों को मरहम तो लगाने दो
!रांझा ने कहा ,नहीं ये ज़ख़्मी कदम है मेरी मोहब्बत के निशा !
इन पर मरहम लगाना मोहब्बत की तौहीन होंगी!
हीर कहे रांझे से तुम्हारे प्यासें होंठों को पानी तो पिलाने दो!
रांझा ने कहा,नहीं ये है मेरी रूह की प्यास !
पानी का पिलाना मेरी रूह की तौहीन होगी!
रांझे ने कहा हीर तु नहीं जानती,तु मेरी क्या है?
तु ही मेरा प्यार,तु ही मेरी इबादत,तु ही अजान ,तु ही कुरान,
तुम से बढ़ कर कायनात में कुछ नहीं तु जुस्तजू है मेरी!!!!!
तुझसे मिलने की तड़प से आई है,
दुश्मन की दर दिवारों में
न देख तु मेरे जिस्म के रिसते लहूँ को,
न देख ज़ालिम दुनिया की रुसवाई को!
न होने देगा ये बेदर्द ज़माना मिलन हमारा ,
अब तो फ़ना होकर ही होगा मिलन हमारा!
तेरी बाँहों में निकले दम मेरा,
यही इबादतें ख़ुदाई होगी!
लेकर बाँहों में रांझा को हीर बोली,
मेरी रूह जुदा नहीं तेरी रूह से,
जिस्म ख़ुदा ने ज़रूर दो बनाएँ थे!
पर रूह एक ही बनाई थी!
ले लो विदाई ,करो रूखसत ज़माने को,
वो देखो ऊपर आसमाँ में,
जन्नत में ख़ुद ख़ुदा ने हमारे मिलन की सेज सजाईं है!
और थम गई होंठों के एक दूजे से लग कर दो धड़कनें!