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Dr. Anu Somayajula

Abstract

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Dr. Anu Somayajula

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हॅलो कोरोना

हॅलो कोरोना

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कहो कोरोना-

क्या चाल है, कहो ना


तुम निमंत्रित तो नहीं

आमंत्रित भी नहीं,

अकस्मात उतर आए

अचीन्हे अतिथि हो;

किंतु-

अतिथि के संस्कारों से

नितांत अपरिचित।


जानते हो,

अतिथि को-

अपनी सीमाओं का ज्ञान होता है,

घर की मर्यादा का भान होता है,

घर वालों की

भावनाओं का भी ध्यान होता है,

तब ही तो वह

वांछित और सम्मान पात्र होता है।


किंतु कोरोना

तुमने तो कोई पाठ पढ़े ही नहीं,

हर घर की-

सीमा लांघ रहे हो,

मर्यादा तोड़ रहे हो,

घर तो क्या-

तुम देश काल की

सीमाओं की हर लक्ष्मण रेखा

पार कर रहे हो।

फिर कैसे मान लिया

कि तुम स्वागत के पात्र हो!


हम स्वभाव से

सामाजिक प्राणी हैं।

किंतु तुम्हारी घुसपैठी ने हमें

असामाजिक होने को बाध्य कर दिया है।

तुम्हारी आक्रामकता ने

हमें घर की-

चारदीवारी का कवच पहना दिया है।

स्नेह-मिलन, सम्मेलन

भुला दिया है।

जान लो-

फिर भी हम हारे नहीं हैं।

हम जीवट, तुमसे छुटकारा पाने को

सतत प्रयत्नशील हैं।


हम अच्छी तरह जानते हैं-

घर में, तन में,मन में

घुस बैठे शत्रु को हराना कठिन है!

फिर तुम तो

प्रतीकार की भावना से

हमारी रग-रग में समाए,

हम ही पर आश्रित

एक दुर्बल, अर्ध जीव हो;

फिर भी

हम प्रयत्नशील हैं,

तुमसे लोहा लेने को

तत्पर, प्रतिबद्ध हैं।

एक सामूहिक रणनीति आज-

पूरे विश्व को

आपस में जोड़े हुए है,

इस अभियान में विजयी होने को

हम कटिबद्ध हैं।


किंतु कोरोना-

तुम परजीवी, परावलंबी

हमारे ही अंदर

घर कर गए,

पनपते, फलते फूलते रहे,

अपने आप पर इतराते रहे।

बोलो-

अब हम ही न मिलें

तो क्या करोगे?

हमारे बिना

तुम नितांत अस्तित्वहीन हो जाओगे!


आज पूछने का मन है-

कहो कोरोना,

क्या हाल है, कहो ना।


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