धन्य सृष्टि वर्षा कल्पित प्रसाद.. नितांत एकांत नवनीत मनोरम! धन्य सृष्टि वर्षा कल्पित प्रसाद.. नितांत एकांत नवनीत मनोरम!
आज पूछने का मन है- कहो कोरोना, क्या हाल है, कहो ना। आज पूछने का मन है- कहो कोरोना, क्या हाल है, कहो ना।
आओ जिंदगी समेट लाते हैं फिर से सहेज कर सँवार लेते हैं। आओ जिंदगी समेट लाते हैं फिर से सहेज कर सँवार लेते हैं।
“मेरे” न होने से मेरा “मैं” नितांत अस्तित्वहीन है। “मेरे” न होने से मेरा “मैं” नितांत अस्तित्वहीन है।
बेहद ज़रूरी हो जाता है, खुद को बर्दाश्त करना ! बेहद ज़रूरी हो जाता है, खुद को बर्दाश्त करना !
आंखे बंद कर घूम आता हूँ दूर दूर तक तुम्हारा पूरा देश। आंखे बंद कर घूम आता हूँ दूर दूर तक तुम्हारा पूरा देश।