आओ थोड़ा टहल आते हैं
आओ थोड़ा टहल आते हैं
आओ थोड़ा टहल आते हैं
पुरानी होती खिड़कियों से बचपन झांक आते हैं
किस्से कहानियों का वैसे होता तो शोर बहुत है।
लेकिन आज फोटो में टंगी यादों को उतार लाते हैं
चलो चक्कर लगा आते हैं
संकरी गलियों में गिल्ली डंडे को खेलकर आते हैं।
यादों का मकड़जाल बुन सा गया है
चरमराती सांसों का सिलसिला बन सा गया है
हर कहीं कभी भी साक्षात्कार होने लगा है।
बार-बार हमें पुकार रहा है
तो चलो उठते सैलाबों को भी जी आते हैं
कुछ पल थम कर उन पलों को थाम लेते हैं।
रूह में बसी तो है, लेकिन तहों में छिपी सी है
उन यादों से जन्नत बना लेते हैं
दरख्तों में फिर से घर बना आते हैं।
नई उड़ानों के लिए पंख भी ले आते हैं
नितांत अकेले हो जाएं इससे पहले ही।
माला में मोती पीरो आते हैं।
आओ जिंदगी समेट लाते हैं
फिर से सहेज कर
सँवार लेते हैं।