हे कलम
हे कलम
हे कलम तुम जब भी लिखना
इक अद्भुत बात लिखना
चमत्कार कुछ नया करके
एक अजब इतिहास लिखना।
दुखी हृदय का क्रंदन लिखना
किसी पीड़ित का बंधन लिखना
न केवल सजी हुई रहना
काम तुम्हारा निरंतर लिखना।
तलवार से तीक्ष्ण धार हो
डूबते नाविक की पतवार हो
जन-जन का भाग्य बदल देना
सदैव सत्य की राह पर चलना
युगों युगों से निरंतर चलती हो
अवलोकित करती कालांतर हो
सभ्यताओं को वर्णित किया
अवतार फिर इक नया लिया
झूठ, कपट, के संग न बहना
सृजन सदैव निरन्तर करना
नतमस्तक हो जन तुम्हारे आगे
ऐसा कर्म सतत ही करना
इक कर्णप्रिय साज बन जाना
मूक कंठ की आवाज़ बन जाना
सलिल सी सदा अविरल बहना
अन्याय, झूठ कदापि न सहना
रक्त में जोश हरदम भरती
ज्वाला, नई सब में जगाती
उन्नति की परिभाषा लिखना
सुनहरे कल की आशा लिखना
ऊँच, नीच का भेदभाव भुला
प्रेम, सद्भाव, सत्य ही दिखाना
निष्ठा से प्रेरित सुंदरतम सी
छवि मानस पटल पर अंकित करना।।