हौसलों की दुकान
हौसलों की दुकान
उसे गुमाँ है कि मेरी उड़ान कुछ कम है
मुझे यक़ीं है कि ये आसमान कुछ कम हैll
वक्त कुछ इस तरह हावी हुआ हम पर,
फिजाओं ने भी जहर भर चला,
यूं तो इंसान की इंसान से ताल्लुकात पर जोर रहा
सदियों से,
सख्त ए दिली देखिए, खुदा ए कुदरत की,
मंजरे खौफ़ न पूछिए साहब,
तकल्लुफ से भी सहरा आदमजात,
मातम ही मातम चारों ओर,
दरिया अश्क का सैलाब दिखा,
साजिशें रही कुछ फिजा की भी,
ऑक्सीजन के लिए तड़पकर तोड़ते दम,
उफ्फ़, यह भयंकर मंजर हर नजर ने देखा,
पर मेरे हौसले इतने परस्त भी ना थे,
कि कोई तूफान उन्हें उड़ा ले जाए,
डूबती हुई कश्ती को सहारा जज्बात का था,
जो बच गया उसे समझ लो इस एहसास का था,
सिसकियां तो रही विपरीत दौर में,
पर जख्मों को सील कर मुस्कुराने की आदत मेरी जिद है,
कमजोरी है,
यूँ टूट कर बिखर जाती नहीं अक्सर,
पर अगर बिखरी भी हो तो फिजाओं में इत्र बनकर महकी हूँ,
हौसलों की दुकान पर हक जमा कर बैठी हूं
अपनी नाकामियों पर एक बार फिर इतरा कर बैठी हूं,
साजिशें कितनी भी कर ले यह फिजा, यह कुदरत,
पर अपनी तख्त को जमीनी हकीकत देख कर सुकून से बैठी हूं
मैं आँधियों के पास तलाश-ए-सबा में हूँ
तुम मुझ से पूछते हो मिरा हौसला है क्या