क्या खोया क्या पाया
क्या खोया क्या पाया
क्या खोया क्या पाया
बहुत दिनों के बाद आज फिर अपने आप से,
बात करने का मौका मिला ,
जब बतियाने बैठी खुद से,
प्रतिबिंब आईने में कुछ इस कदर दिखने लगा,
मानो सब हार कर बैठती हूं ,
बस टूट कर बिखरी ही नहीं,
हौसला अपना बटोर कर कुछ लिखने बैठी हूं,
कलम का साथ चाहिए,
जज्बात और वह दौर कागज पर उतारने बैठी हूं,
अपने दिल को उस पीड़ा से आज उभारने बैठी हूं,
कोविड-19 का दौर ,हर हौसले पर भारी पड़ा,
इंसानियत ने इंसानियत का साथ छोड़ा,
तो कुदरत ने भी कहर भरपाने में कोई कसर न छोड़ी,
हर जगह का नजारा मायूस कर देने वाला था,
कोई किसी का क्या सहारा बने, जब हर कोई बेसहारा था,
दहशत ही दहशत का नजारा, जो खुलेआम था,
कोई व्यक्ति भूख मिटाने को तरस रहा था,
तो कोई ऑक्सीजन के लिए मोहताज था ,
अपनों को खो न दें खौफ बेहिसाब था,
जिसने कभी जात - बिरादरी को ऊपर रखा,
आज वह हिंदू, मुस्लिम ,सिख, ईसाई जात धर्म से आजाद था,
मानव इस धरती से लुप्त न हो जाए,
अपनी शाख बचाने के लिए कर रहा हर संभव प्रयास था ,
खोया तो बहुत कुछ हमने इस कोविड के दौर में,
अपनों को तड़पते हुए दम तोड़ते देखा,
कुछ रिश्तो को भी मुंह मोड़ते देखा ,
हर तरफ एक शोर उभरते देखा,
न मिलो किसी से दूरियां बढ़ाओ ,
मस्क लगाओ,सैनिटाइजर लगाओ, सोशल डिस्टेंसिंग का रखो ख्याल तभी बचेगी जिंदगी,
मन में उठते तरह-तरह के भवर से जी परेशान था,
इतना करने के बाद भी हर तरफ मौत का साम्राज्य था,
एक नजारा इतना खौफनाक श्मशान में भी कतार लगी थी,
नदियों में तैरती लाशें,
यक़ीनन अपनों के लिए बेकरार तरसती हैं आंखें,
आंसुओं के सैलाब से डूबा हर शख्स,
क्या कहिए जनाब, पूरे जहां का यही हाल था,
कब्रिस्तान में भी जगह न थी ,
आखरी मंजिल पर अपनों को न देख पाने का गम ,
वाह रे जिंदगी तू कितनी बेरहम ,तू कितनी बेरहम है,
फिर भी कुछ तिनके उठाकर घोंसला बनाया, दूसरों ने मदद का हाथ बढ़ाया,
एक दूसरों का साथ देने के लिए हर कोई तैयार था,
नहीं हौसलों से नई जिंदगी की डोर पकड़ी
पथरीले रास्तों से फिर एक उम्मीद पकड़ी,
ऊचा ना उड़ पाएं तो क्या,
पर उड़ने का हौसला तो रखेंगे,
अपने पंखों को फिर मजबूत करने का इरादा रखेंगे,
और देखते ही देखते न जाने कब इन पंखों ने उड़ान भरी ,
जिंदगी ने जिंदगी से फिर नजरें मिलाने लगी ,
वह दिल जो दूर थे ,पास आकर धड़कने लगे,
इतनी ठोकरओं के बाद
अब जाकर इंसान यह समझा है,
कुदरत से खेलेंगे तो खुद का अस्तित्व मिटा बैठेंगे,
अपनों को बुलाएंगे तो बेहद दूर जा बैठेंगे ,
दिल से दिल को जोड़ना, बेसहारों के लिए सहारा बनना,
यकीनन यह सीख हमें कोविड का दौर दे गया,
खोया अगर बहुत कुछ पर बटुआ अब मेरा दोस्ती से भरा है,
हर जाति , धर्म में अपना एक दोस्त बना है,
अब यह जाकर समझ में आया है,
इंसान इंसान का साया है ,
ना कोई कुछ लेकर आया है ना कुछ लेकर जाएगा,
हां लेकिन अगर इंसानियत का धर्म अगर निभा जाएगा
तो यह जग फिर से रंगों से लहराएगा रंगों से लहराएगा ll