क़िस्सा भूतनी का
क़िस्सा भूतनी का
भुट्टे के उबाल कर सुखाए गये, कठोर दानों को सील / बट्टे से कूट कर
जतन से पोपले मुँह में घुलाती, बचे हुए छः / आठ दाँतों से चबाती
दुह लेती गाय का दूध भी, उसको घास भी डाल आती
आँगन में खड़े अखरोट के पेड़ को, हम बच्चों से बचाती
बसन्ती सब को एक दुष्टा नज़र आती
आँगन में खड़े अकेले पेड़ सी, तनहा ज़िंदगी बिताती
शोर मचाते बच्चों को, गर्म चिमटा दिखाती
सुबक कर अकेले में रोती तो होगी,
रोने की मगर घर से उसके, कोई आवाज़ नहीं आती
बैट / बॉल लिए उस के आँगन, चौकड़ी हमारी जम जाती
डंडा लेकर हम सब को खूब दौड़ाती
एक भूतनी सी, हम सभी को नज़र आती
उसके अकेलेपन दर्द को, मैं कभी न समझ पाता
उसके रोशनदान से ग़र, उसका चौका नज़र न आता
उस रोशनदान से वो नजारा देख लिया था
हाँ !! मैंने उसे रोते देख लिया था
अब मुझे वो ममता से भरपूर, चिल्लाती शह नज़र आती
मैं भर देता था उसका पानी, चूल्हा सुलगा देता था
आटे का धुला कनस्तर धूप में सूखा देता था
साथी बच्चे छेड़ते थे मुझे,
भूतनी का बच्चा बताते थे मुझे
माँ ने पहले समझाया, फिर धमकाया था
वो जादू कर देगी, तुझे कबूतर बना देगी
मेरा मोह पर ख़त्म नहीं हो पाया,
हाँ मैंने उस भूतनी की बीमारी में, उसे कई बार पानी पिलाया
बुजुर्गों का साथ मुझे अब बहुत पसंद आने लगा
मैं जब भी ध्यान से सुनता हूँ, अनसुने क़िस्सों को बुजुर्गों के बार / बार
बैठी नज़र आती है वो प्यारी भूतनी आस -पास, हर बार
मैं उस को शुक्रिया बोलना चाहता, माफ़ी भी माँगना चाहता हूँ
वो प्यार से देखती मुझे बार बार,
खूब तरक़्क़ी करो यह आशीर्वाद देती हर बार
कल जब मैं बुजुर्ग हो जाऊँगा,
बार / बार यह क़िस्सा सब को सुनाऊँगा