कठघरा
कठघरा
आज अजीब सा सपना देखा
खुद को कठघरे में खड़ा देखा
कभी वादी मन, कभी प्रतिवादी मन
तो कभी न्यायाधीश सा चेहरा देखा
आज अजीब सा सपना देखा ।
बात छोटी पर इल्जाम बड़ा था
अपने अपनो से बात नहीं करते है
वादी मन का सवाल खड़ा था
क्या बेबाकी से अपने ने
अपनो से ही सवाल किया
सवालों के माध्यम से अपने ने
अपनत्व का पड़ताल किया ।
वादी मन का सवाल सुन
प्रतिवादी मन तिलमिला उठा
कैसा अनर्गल आरोप लगाया तू
प्रतिवादी मन झल्ला उठा
चल रही थी तारीख पर तारीख़
पर प्रत्युत्तर अभी तक आया न था
प्रत्युत्तर दे भी तो कैसे
उलझन भरा सवाल ही था।
अमेरिका अफ्रीका सी रंगभेद जहाँ पर
चीन तिब्बत सी कदभेद जहाँ पर
भारत पाक सी ईर्ष्या द्वेष जहाँ पर
ऊँच नीच का मतभेद जहाँ पर
लुप्त होती कृष्ण सुदामा प्रेम जहाँ पर
एक ही छत के नीचे कई दीवार जहाँ पर
मौके पर भी भीष्म पितामह मौन जहाँ पर
सिर चढ़ नाच रहा हो अर्थ अहम जहाँ पर
गौण होती रिश्ते का अहसास जहाँ पर
उससे मैं क्या आस करूं
कर न सके मूल्यांकन जो मानव मूल्यों को
उस महामानव से मैं क्या बात करूं ?
सुन प्रत्युतर वादी मन डुबा गहरी सोच में
अपनो से लगी ठोकर फिर आया ठिकाने होश में
आंशिक सत्य आंशिक मिथ्या
कुछ आरोप मनगढ़ंत था
पर अंतर्मन को कैसे तलाशे
यक्ष प्रश्न समक्ष वादी के खड़ा था ।
जो अब तक सोये थे चैन से
वो मन आज अति चिंतित था
गायब हुई नींद आँखों की
इस कदर वादी मन विचलित था
किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति बनी हुई थी
पर उत्तर मिल न पाया था
जो भी उत्तर खोज निकालता
पलटा प्रश्न उसका पहले से हाजिर था ।
हो निरुत्तरवादी मन चुपचाप खड़ा था
प्रतिवादी मन भी सुनने को उत्तर वहीं अड़ा था
बीत रही थी घंटे दर घंटे
पर जवाब अब तक मिल न पाया था
कौतूहल भरी थी निगाहें सबकी
और दोनों के बीच सन्नाटा था
कहीं हुई थी भावना आहत तो कहीं दिल में चोट था
रंगभेद कदभेद अर्थभेद तो था एक बहाना
पर मनभेद मध्य दोनों किंचित न था
नीची आँखें बता रही थी
संचित प्रेम एक दूजे के दिल में था
पर संवादहीनता के अभाव में
छोटी फुंसी बना अब नासूर था
देख मन:स्थिति दोनों की
न्यायाधीश मन मुस्कुराया
नब्ज पकड़ में आ चुकी थी
मध्य दोनों के मनमुटाव का
पास बुलाकर दोनों मन को
न्यायाधीश मन ने समझाया
सब अपने अपने खाते कमाते हो
तो झगड़ा किस बात का
सुबह शाम औपचारिकता बस
हाल चाल पूछ लिया करो
स्नेह बढ़ेगी आहिस्ता आहिस्ता
साथ में कभी चाय पी लिया करो
प्रासंगिक हो तो चुटकुला ही सही
पर साथ साथ हँस लिया करो।
सुन न्यायाधीश मन की बात
दोनों मन मंद मंद मुस्कुराया
शिकवे गिले छोड़ कचहरी
ठहाका लगाते एक साथ दोनों घर आया ।
