जब एक लड़की औरत बन जाती है।
जब एक लड़की औरत बन जाती है।
निकलकर बचपन की गलियों से जवानी की सड़क पर आ जाती है...
जाने कब एक लड़की औरत बन जाती है ।
एक छोटी सी बच्ची खिलौनों से खेलते-खेलते,
यूँ ही कभी अपनी गुड़िया को गोद में खिलाती है...
जाने कब एक लड़की औरत बन जाती है।
होकर विदा फिर उस घर से वह दूसरा घर-आंगन महकाती है ...
वह भोली छुईमुई सी गुड़िया फिर सब चंचलता भूल जाती है...
जाने कब एक लड़की औरत बन जाती है।
वह बात बात पर झगड़ने वाली,भाई बहनों से बात मनवाने वाली,
अपने पति से छोटा सा गिला भी ना कर पाती है...
जाने कब एक लड़की औरत बन जाती है।
ना था पहले जगने सोने का कोई नियम जिसका,
अब सब के जागने से पहले ही उठ जाती है...
जो खुद कभी मां की गोद में सिर छुपाती थी,
अब अपने नन्हे नन्हे बच्चों को गोद में सुलाती है...
जाने कब एक लड़की औरत बन जाती है।
था सजना सँवरना पहला शौक जिसका,
अब अनसुलझे बालों में ही सारा दिन बिताती है...
जो रहती थी काम और रसोई से कोसों दूर,
अब आधा क्या पूरा दिन ही रसोई घर में बिताती है...
जाने कब एक लड़की औरत बन जाती है।
रो देती थी जो छोटे से कांटे की चुभन से,
अब बड़े बड़े दुखों को दिल में दबा जाती है..
मन ठीक ना होने पर जो पलंग से ना उठती थी,
अब हर जिम्मेदारी को वह हंसकर निभाती है...
जाने कब एक लड़की औरत बन जाती है।
जो सहमी दुबकी घर से कभी निकलती ना थी,
अब बच्चों को पूरे शहर की सैर करा लाती है...
जो डरती थी अनजान से भय खाती थी,
अब अपनी आन के लिए पूरी दुनिया से लड़ जाती है...
जाने कब एक लड़की औरत बन जाती है।
सुन न सकती थी जो छोटी सी बात किसी की,
अब बड़ी-बड़ी बातों पर भी चुप रहना सीख जाती है..
करती थी जो बहस हर बात पर माँ से,
अब हर वक्त उसे बस माँ ही याद आती है...
जाने कब एक लड़की औरत बन जाती है।