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Shikha Sharma

Tragedy

4  

Shikha Sharma

Tragedy

नारी की व्यथा...

नारी की व्यथा...

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बात हो रही है सीता के त्याग की..

उस पवित्र नारी के फूटे भाग की...

संसार की खातिर जिसने अपने आप को बलिदान कर दिया...

दुनिया को खुश करने को जिसने घूँट खून का पी लिया...

छुआ जबरन जिसने तन उसका, उसे मौत की नींद सुला दिया...

श्रीराम ने तो आदर्श पति का पूरा फर्ज़ निभा दिया...

फिर भी ना जाने दुनिया को क्यों, पवित्र प्यार यह खलता है...

कितना महान है देश मेरा, इस बात से पता चलता है...

लोग करते थे बातें तब भी, अब भी बातें करते हैं... 

घर से अलग रहने वाली पर अब भी सब शक करते हैं...

कहते हैं सब कुछ बदल गया, पर कहां अभी कुछ बदला है...

अब भी नारी पराधीन है, अब भी कही जाती अबला है...

अब भी जो देर से आती है, जो अकेली आज़ाद कमाती है...

उसके चरित्र और पवित्रता पर यह दुनिया प्रश्न उठाती है.. 

और छल और बल से आज भी गर किसी नारी का तन भेदा जाता है...

कहते हैं इज्जत गई उसकी, उसे दागदार समझा जाता है... 

क्यों अब भी मेरे देश में स्त्री को एक वस्तु समझा जाता है..

और उसके अंदर भी है एक दिल, यह कोई नहीं समझ पाता है...

चाहे पहुंच जाए वह मंगल पर, पर घर उसकी पहली जिम्मेदारी है...

जो नहीं पका पाती खाना, वह कही जाती "कुसंस्कारी" है...

अब भी उसको बचपन से बस सहना सिखाया जाता है...

उसके आगे बढ़ने की कोशिश को चुपचाप दबाया जाता है...

नारी पर आखिर मैं क्या लिखूं, सीता का त्याग सब कह गया...

देख कर उसकी कुर्बानी को मन मेरा भी स्तब्ध हो गया...

नहीं बनना ना ही बन सकती, सीता के जैसे महान हूं...

बस इतना ही काश कोई समझ सके, 

कि मैं भी एक इंसान हूं... मैं भी एक इंसान हूं!

   


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