कुछ पंक्तियाँ दोस्तों के नाम
कुछ पंक्तियाँ दोस्तों के नाम
आज दिल किया लिखूं कुछ दोस्तों पे, वो कुछ लोग थे जो अब कहीं गुम से हैं।
जिनके बिना एक दिन भी गुजरता ना था, वो सालों से अब गुमसुम से हैं।।
याद आते हैं वो दिन बेफिक्री के, जब ना सोच थी, ना समझ और ना अक्ल यारो।
अब लगता है क्यों हो गये हम समझदार इतने, वो बेफिक्री के लम्हें गये थम से हैं।।
वो लड़ना, वो झगड़ना, वो फिर से मान जाना, याद आता है अक्सर वो दोस्तों पे जान लुटाना ।
अब कहां से ढूँढे वो पक्की दोस्ती, हजारों दोस्तों में भी "दोस्त" अब कम से हैं।।
वो बेधड़क किसी के भी घर चले जाना, ना बेल ना फ़ोन सीधा बेडरूम में घुस जाना।
अब तो बात करने की भी परमिशन लेनी पड़ती है, ये आजकल के रिवाज़ थोड़े बेरहम से हैं।।
आजकल की दोस्ती में वो बात कहाँ, बिन बोले समझ जाये वो औकात कहाँ।
वो अलग ही लोग थे जिनसे दिल मिला करते थे, ये आजकल के दोस्त तो कुछ बेशर्म से हैं।।