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Shikha Sharma

Drama Inspirational

5.0  

Shikha Sharma

Drama Inspirational

नहीं हूँ मैं आज़ाद

नहीं हूँ मैं आज़ाद

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नारी जो 'अबला' थी कभी, अचानक 'सबला' कहलाने लगी।

चार किताबें क्या पढ़ लीं, जाने कैसे-कैसे ख्वाब सजाने लगी।।

जो थी सदियों से जंजीरों में जकड़ी हुई।

देखो,आज कैसे आजादी का जशन मनाने लगी।।


देखने लगी ख्वाब आसमानों में उड़ने का।

ख्वाबों-ख्यालों में अपनी पुरानी छवि मिटाने लगी।।

सोचती "अब करूँगी कुछ ऐसा कि देखेगी दुनिया।"

अपने सशक्तीकरण के नारे से भ्रम में आने लगी।।


पढ़ती थी संविधान कि, क्या-क्या अधिकार हैं उसके।

आज़ादी की कहानियां पढ़ कर फिर से सिर उठाने लगी।

जब देखती अपने आस-पास होते अत्याचारों को।

तो जमाने को बदलने के ख्वाब सजाने लगी।।


फिर एक दिन आया जब बनी दुल्हन वो।

एक सभ्य,सुशील नारी का किरदार निभाने लगी।।

जो सुनी थी कहानियां अब तक ज्यादतियों की।

उनको अब अपने आप पर लागू कराने लगी।।


जब मौका आया साबित करने का अपनी खूबियों को कभी।

तो सुना,"कुछ पैसे कमा लिये तो धौंस जमाने लगी?"

फिर एक दिन लगा उसके स्वाभिमान को ऐसा धक्का।

कि सब छोड़ दिया और अपने मन को समझाने लगी।।


"मैं आज़ाद हूँ,नहीं अब डर किसी का।"

तो उसकी तन्हाईंयां ही आगे बढ़कर उसे डराने लगी।।

जिस समाज में आज़ाद रहकर कुछ करना था उसे।

उसी समाज की नजरों में 'गलत' समझी जाने लगी।।


जिस 'आज़ादी' को आजतक पढ़ती रही थी वो।

वो किताबों तक ही है,उसे समझ आने लगी।।

जब कुछ न कर पायी वो अपने आप के लिये,

तो "नहीं आज़ाद हूँ मैं..." एक ही बात दोहराने लगी।।


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