मंजिल........
मंजिल........
मंज़िल सबकी अपनी अपनी होती है
कभी कभी कुछ मिल के मंज़िल तय करते है
कुछ आगे बढ़ते है, कुछ सोचते रहते है
कुछ अपने मंज़िल तक पहुँच जाते है
कुछ राहो में चलते चलते गिर के उठ जाते हैं
क्यों की आँख खुली हो या बंद उन्हें मंज़िल दिखता है
मंज़िल तक पहुंचना उनका जोश बढ़ाता है
कभी हार के हार नहीं मानते, जिद पे अड़े रहते है
सफलता उनकी कदम चूमता है
मंज़िल सबकी अपनी अपनी होती है.....
जनम से मंज़िल नहीं मिलती है
ये तो बढ़ती उम्र के साथ खुद तय करते है
कुछ हालात के साथ कुछ सोच के साथ लेते हैं
कुछ भी हो सब अपनी अपनी मंज़िल चुनते है
मंज़िल बड़ा प्यारा होता है
सबको अपना रास्ता बताता है
सबकी मन में सुन्दर सपना सजता है
कभी हँसाता तो कभी रुलाता है
मंज़िल सबकी अपनी अपनी होती है.....
मंज़िल कुछ काम करवाता है
जिंदगी में जुझारू बनाता है
कभी दुख का सामना करवाता है
कभी हसीन पल का साथ दिलवाता है
फिर भी मंज़िल तक पहुँचना आसान नहीं है
कभी कोई हारी हुई बाज़ी जीत लेता है
कभी कोई जीत के भी हार जाता है
मंज़िल तक पहुंचने की जिद सब आसान करता है
मंज़िल सबकी अपनी अपनी होती है.....
हम बेकार में तू तू मैं मैं में उलझा रहते है
रास्ता भटकने की भूल करते है
कभी कभी समय का इंतज़ार करते है
पर समय अपने लय के साथ चलता है
कभी बीते हुए पल को कोसते है
कभी अपने नसीब को कोसते है
कभी किसी और को कोसते है
फिर अपनी मंज़िल की ओर रास्ते भूल जाते है
जब फिर मंज़िल की छोटी सी किरण देखते है
फिर सहारा मिलता है
उसकी और उठ के चल पड़ते हैं
कभी वहां पहुँचते या कभी देर हो जाता है
फिर भी हम चल पड़ते है
मंज़िल सबकी अपनी अपनी होती है...
मंज़िल अपने जगह है पर कुछ खेल दिखलाता है
जब कोई मन में ठान लेता वो पा लेता है
कुछ करना ना करना भी मंज़िल की ओर जाता है
कमज़ोर तो दिल है पर मन को साथ देता है
हर मुश्किलों में रास्ता दिखलाता है
मन का विश्वास हौसले बढ़ाता है
दिल का साथ मंज़िल की ओर ले जाता है
मंज़िल सबकी अपनी अपनी होती है.........
जब मिल के मंज़िल तय करते है
वो भी सबकी अपना अपना बन जाता है
रहता है ये दिल के पास पर दूरी बढ़ाता है
कभी गिरता हैं कभी टटोलता है
कभी दूर खड़ा हँस के बुलाता है
कभी आँखों में बसता है
पर जो भी हो वो अपनी जगह रहता है
बचपन से बूढ़े होने का अहसास नहीं देता है
सिर्फ कामयाबी की जवानी को दिखलाता है
मंज़िल सबकी अपनी अपनी होती है ..........
